लो ज़ोफ़ से अब ये हाल-ए-तन है साया मुतजस्सिस-ए-बदन है यहाँ तन ही नहीं है लाग़री से हम को क्या हाजत-ए-कफ़न है मिस्ल-ए-निकहत हैं जामा कैसा अपना तो बदन ही पैरहन है हूँ बुलबुल-ए-बोस्तान-ए-तस्वीर बे-ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ मिरा चमन है हूँ कुश्ता-ए-तेग़-ए-शर्म-ए-जानाँ हर ज़ख़्म का बे-ज़बाँ धन है ला-रैब 'नसीम'-देहलवी तो उस्ताद-ए-नज़ाकत-ए-सुख़न है