लोग जिस शख़्स को सरदार बना देते हैं अपनी तक़दीर का मुख़्तार बना देते हैं शे'र का रिश्ता किसी फ़िक्र से हो या नहीं हो चंद अल्फ़ाज़ इसे शहकार बना देते हैं तजरबे पर है नए इल्म की बुनियाद सदा दायरा देख के परकार बना देते हैं साहब-ए-कुन-फ़यकूँ मेरे भी सीने में उतार लफ़्ज़ जो आग को गुलज़ार बना देते हैं इतना आसाँ नहीं ये इश्क़ दोबारा बनना आप कहते हैं तो सरकार बना देते हैं हमी मिट्टी हैं हमी चाक हमी कूज़ा-गर आप को जो भी है दरकार बना देते हैं अपने दरवाज़े पे 'फ़ाएज़' है शब-ओ-रोज़ हुजूम हम हैं वो लोग जो किरदार बना देते हैं