लोग कहते हैं इक सदा हूँ मैं ख़ैर ख़ुद ही में गूँजता हूँ मैं आँख जैसे कई दरीचा है और अंदर से झाँकता हूँ मैं तू ने चाहा था घेर ले मुझ को देख बाहोँ में आ गया हूँ मैं अपने साए से पूछ लेता हूँ क्या तिरे साथ चल रहा हूँ मैं तेरी बातों में हो गया हूँ गुम अपनी आवाज़ खो चुका हूँ मैं इस किनारे से उस किनारे तक अपनी मंज़िल को ताकता हूँ मैं उस से अब क्या शिकायतें हों असर जिस से फ़रियाद कर रहा हूँ मैं