लोग सब क़ीमती पोशाक पहन कर पहुँचे और हम जामा-ए-सद-चाक पहन कर पहुँचे मोतियों वाली क़बा वाले ख़ुदा के घर तक जिस्म पर पैराहन-ए-ख़ाक पहन कर पहुँचे पागलों जंग बगूलों से छिड़ी थी और तुम अपने तन पर ख़स-ओ-ख़ाशाक पहन कर पहुँचे बज़्म-ए-शादी को न लग जाए बुरी कोई नज़र इस लिए दामन-ए-ग़म-नाक पहन कर पहुँचे हक़-बयानी का उठाया था जो ज़िम्मा हम ने इस लिए लहजा-ए-बे-बाक पहन कर पहुँचे यूँ तो पहुँचे थे ख़ुशी ओढ़ के महफ़िल में तिरी घर तलक दीदा-ए-नमनाक पहन कर पहुँचे एक दिन वो भी नशेबों में मिलेंगे 'नायाब' अर्श तक जो कभी अफ़्लाक पहन कर पहुँचे