लोगो हम छान चुके जा के समुंदर सारे उस ने मुट्ठी में छुपा रक्खे हैं गौहर सारे ज़ख़्म-ए-दिल जाग उठे फिर वही दिन यार आए फिर तसव्वुर पे उभर आए वो मंज़र सारे तिश्नगी मेरी अजब रेत का मंज़र निकली मेरे होंटों पे हुए ख़ुश्क समुंदर सारे उस को ग़मगीन जो पाया तो मैं कुछ कह न सका बुझ गए मेरे दहकते हुए तेवर सारे आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास मेरे ही सीने में उतरे हैं ये ख़ंजर सारे दोस्तो तुम ने जो फेंके थे मिरे आँगन में लग गए घर की फ़सीलों में वो पत्थर सारे ख़ून-ए-दिल और नहीं रंग-ए-हिना और नहीं एक ही रंग में हैं शहर के मंज़र सारे क़त्ल-गह में ये चराग़ाँ है मिरे दम से 'बशीर' मुझ को देखा तो चमकने लगे ख़ंजर सारे