लोगों का इक हुजूम मिरे आस-पास था जब मैं सफ़ीर-ए-गुलशन-ए-होश-ओ-हवास था तज्वीज़ की थी जिस ने मोहब्बत मिरे लिए शायद वो शख़्स कोई सितारा-शनास था जब तक चराग़-ए-आलम-ए-इम्काँ जले रहे रौशन किताब-ए-इश्क़ का हर इक़्तिबास था जब तक वो एक ज़ात शरीक-ए-सफ़र न थी मेरा वजूद मेरे लिए बे-असास था रहते थे दूर दूर मिरे हम-ख़याल भी जब तक मिरे बदन पे अना का लिबास था जब तक मिरे लहू में हरारत वफ़ा की थी मैं बे-नियाज़-ए-शिद्दत-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास था कल शब हुजूम-ए-दिल-ज़दगाँ में तिरे लिए औरों की तरह मैं भी सरापा सिपास था