लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं हम कफ़-ए-दस्त-ए-ख़िज़ाँ पर भी हिना माँगते हैं हम-नशीं सादा-दिली-हा-ए-तमन्ना मत पूछ बे-वफ़ाओं से वफ़ाओं का सिला माँगते हैं काश कर लेते कभी का'बा-ए-दिल का भी तवाफ़ वो जो पत्थर के मकानों से ख़ुदा माँगते हैं जिस में हो सतवत-ए-शाहीन की परवाज़ का रंग लब-ए-शाइ'र से वो बुलबुल की नवा माँगते हैं ताकि दुनिया पे खुले उन का फ़रेब-ए-इंसाफ़ बे-ख़ता हो के ख़ताओं की सज़ा माँगते हैं तीरगी जितनी बढ़े हुस्न हो अफ़्ज़ूँ तेरा कहकशाँ माँग में माथे पे ज़िया माँगते हैं ये है वारफ़्तगी-ए-शौक़ का आलम 'सरदार' बारिश-ए-संग है और बाद-ए-सबा माँगते हैं