लुत्फ़ ख़ुदी यही है कि शान-ए-बक़ा रहूँ इंसान के लिबास में बन कर ख़ुदा रहूँ जब मुझ को मेरे सामने आने से आर है किस हौसले पे तुझ को ख़ुदा मानता रहूँ पर्दे में इक झलक सी दिखाने से फ़ाएदा जल्वे को आम कर कि तुझे देखता रहूँ इक तू कि मेरे दिल ही में छुप कर पड़ा रहे इक मैं कि हर चिहार तरफ़ ढूँढता रहूँ तू ही बता कि ये कोई इंसाफ़ तो नहीं तेरा ही जुज़्व होने पे तुझ से जुदा रहूँ भेजा है ऐ ख़ुदा मुझे क्या तू ने इस लिए हर वक़्त ज़िंदगी में रहीन-ए-बला रहूँ हर गाम मुझ को काबा ही मक़्सूद है रतन आया है वो मक़ाम कि हर दम झुका रहूँ