मआल-ए-नग़्मा-ओ-मातम फ़रोख़्त होता है ख़ुशी के साथ यहाँ ग़म फ़रोख़्त होता है वो जिस को आज भी कुछ लोग हुस्न कहते हैं ब-सद-निगारिश-ए-पैहम फ़रोख़्त होता है फ़रेब-ख़ुर्दा तबस्सुम ख़रीदने के लिए वक़ार-ए-दीदा-ए-पुर-नम फ़रोख़्त होता है बड़े हसीन घनेरे सियाह पर्दों में जमाल-ए-इस्मत-ए-मर्यम फ़रोख़्त होता है बहार-ए-वादी-ए-गंग-ओ-जमन के साथ यहाँ वक़ार-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म फ़रोख़्त होता है वो जिस्म-ए-मरमरीं नज़रें भी जिस को छू न सकीं बराए-रौनक़-ए-आलम फ़रोख़्त होता है तिलिस्म-ख़ाना-ए-सद-रंग-ओ-बू में ऐ 'साग़र' फ़रेब-ए-शोला-ओ-शबनम फ़रोख़्त होता है