मगर वो दीद को आया था बाग़ में गुल के कि बू कुछ और मैं पाई दिमाग़ में गुल के अदू भी हो सबब-ए-ज़िंदगी जो हक़ चाहे नसीम-ए-सुब्ह है रोग़न चराग़ में गुल के चमन खिलें हैं पहुँच बादा ले के ऐ साक़ी गिरफ़्ता-दिल मुझे मत कर फ़राग़ में गुल के नहीं है जा-ए-तरन्नुम ये बोस्ताँ कि नहीं सिवाए ख़ून-ए-जिगर मय अयाग़ में गुल के अली का नक़्श-ए-क़दम ढूँढता है यूँ 'सौदा' फिरे है बाद-ए-सहर जूँ सुराग़ में गुल के