मह है अगर जू-ए-शीर तुम भी ज़री-पोश हो By हुस्न, Ghazal << कौन इस बाग़ से ऐ बाद-ए-सब... तुम कुछ भी करो होश में आन... >> मह है अगर जू-ए-शीर तुम भी ज़री-पोश हो दूध छटी का उसे याद दिलाने चलो आईना-ए-माह को ला'ल-ए-लब अपने दिखा चश्मा-ए-काफ़ूर में आग लगाने चलो तुम हो मह-ए-चार-दह चार क़दम रख के आज बद्र-ए-फ़लक-क़द्र की क़द्र घटाने चलो Share on: