महज़ दिल-लगी के वो अंदाज़ निकले तेरे सब इशारे दग़ाबाज़ निकले बदल देने का वक़्त भरते थे जो दम वो सब इंक़िलाबी घड़ी-साज़ निकले वो लिखती है क़िस्से उड़न-तश्तरी के किसी तरह तो शौक़-ए-परवाज़ निकले समझ कर अदा हम ग़ज़ल कह रहे थे वो बा-क़ाएदा हम से नाराज़ निकले मोहब्बत की बोटी यूँ अटकी गले में रहा जाए चुप ही न आवाज़ निकले ली शब भर तलाशी हुज़ूर-ए-जिगर की हवाले से उन के कई राज़ निकले