महव कर दी ज़ेहन से ग़म ने तिरी तस्वीर भी दोनों दुश्मन हैं मिरी तक़दीर भी तदबीर भी मुस्कुराती है मिरी आँखों में आँसू देख कर किस क़दर बे-दर्द है ज़ालिम तिरी तस्वीर भी किस क़दर नाज़ुक है एहसासात का आलम कि इश्क़ एक ही नश्शा है लेकिन ज़हर भी इक्सीर भी इन के दीवानों की सज-धज को हिक़ारत से न देख इश्क़ का ज़ेवर हैं नादाँ तौक़ भी ज़ंजीर भी ऐ 'दिल' उस की याद है गोया उसी का आइना मुज़्दा-ए-जाँ-बख़्श भी चलती हुई शमशीर भी