आईन-ए-असीरी के ये मेआ'र नए हैं ज़िंदाँ तो वही है दर-ओ-दीवार नए हैं इख़्लास मकीनों का तो देखा नहीं अब तक हाँ शहर के सब कूचा-ओ-बाज़ार नए हैं दुश्मन से तो कुछ ख़ौफ़ न अब है न कभी था डर ये है कि अब मेरे तरफ़-दार नए हैं बाक़ी नहीं पहली सी वो तक़्दीस-ए-मोहब्बत अब हुस्न नया उस के परस्तार नए हैं पहचान लिया हम ने तुम्हें राह-नुमाओ बातें वही पैराया-ए-इज़हार नए हैं सहमा हुआ सन्नाटा है मख़दूश फ़ज़ाएँ अब देख के चलेगा ये आसार नए हैं बाज़ार की रौनक़ वही पहली सी है 'कौसर' इतना है कि इस बार ख़रीदार नए हैं