महफ़िलों को गुज़ार पाए हम तब कहीं ख़ल्वतों पे छाए हम हैं उदासी के कोख-जाए हम ज़िंदगी को न रास आए हम खाद पानी बना दिया ख़ुद को सिलसिले-वार लहलहाए हम नस्ल तारों की ज़िद लगा बैठी इस्तिआरे उतार लाए हम रूह के होंठ सिल के ही माने हरकतों से न बाज़ आए हम फ़र्ज़ हम पर है रौशनी का सफ़र नूर की छूट के हैं जाए हम प्यास को प्यार करना था केवल एक अक्षर बदल न पाए हम बस हमारे ही साथ रहती है क्यूँ उदासी को इतना भाए हम