महजूर-ए-हर-अंजुमन हैं हम लोग अपने में जिला-वतन हैं हम लोग जो सब्ज़ा-ओ-बर्ग से हो महरूम वो शबनम-ए-बे-कफ़न हैं हम लोग ऐ अपनी ही ख़ल्वतों में महबूस शायद तिरी अंजुमन हैं हम लोग ख़ुद अपने शुऊ'र-ए-जाँ से मल्बूस बे-पैकर-ओ-पैरहन हैं हम लोग ऐ आलम-ए-रंग रंग तख़्लीक़ आज़ुर्दा जान-ओ-तन हैं हम लोग ख़ुद अपने वजूद में तक़य्युद पा-बस्ता बे-रसन हैं हम लोग हर अहद की शहरियत से महरूम हर शहर में बे-वतन हैं हम लोग