दिल का अजीब हाल है तेरी सदा के ब'अद जैसे कि आसमान का मंज़र घटा के ब'अद क्या क्या नुक़ूश हम ने उभारे थे रेत पर बाक़ी रहा न कोई भी वहशी हवा के ब'अद बिखरी हुई थीं चार-सू फूलों की पत्तियाँ गुलशन सँवर सँवर गया बाद-ए-सदा के ब'अद अब तक फ़ज़ा में गूँजती है एक नग़्मगी सारा जहाँ ही रक़्स में है इस सदा के ब'अद अब तक जला रही है हमें तोहमतों की धूप हम तो उजाड़ हो गए फ़स्ल-ए-वफ़ा के ब'अद यादें खुले किवाड़ ये महकी हुई फ़ज़ा कौन आ रहा है शाम ये ठंडी हवा के ब'अद