महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़ पढ़ लूंगा पुल-सिरात पे 'माइल' क़ज़ा नमाज़ सर जाए उम्र भर की हो यारब अदा नमाज़ आए मिरी क़ज़ा तो पढ़ूँ मैं क़ज़ा नमाज़ माँगी नजात हिज्र से तो मौत आ गई रोज़े गले पड़े जो छुड़ाने गया नमाज़ देखो कि फँस न जाएँ फ़रिश्ते भी जाल में क्यूँ पढ़ रहे हो खोल के ज़ुल्फ़-ए-रसा नमाज़ हर इक सुतून ख़ाना-ए-शर-ए-शरीफ़ है रोज़ा हो या ज़कात हो या हज हो या नमाज़ ये क्यूँ ख़मीदा है सिफ़त-ए-साहब-ए-रुकू क्या पढ़ रही है दोश पे ज़ुल्फ़-ए-दोता नमाज़ निय्यत जो बाँध ली तो चला मैं हुज़ूर में रहबर मिरी नमाज़ मिरी रहनुमा नमाज़ साक़ी क़याम से ये जो आया रूकूअ' में शीशा ख़ुदा के ख़ौफ़ से पढ़ता है क्या नमाज़ उठ उठ के बैठ बैठ के करता है क्यूँ ग़ुरूर ज़ाहिद कहीं बढ़ाए न तेरी रिया नमाज़ अरकान याद हैं मुझे ऐ दावर-ए-जज़ा गर हुक्म हो तो सामने पढ़ लूँ क़ज़ा नमाज़ शैतान बन गया है फ़रिश्ता ग़ुरूर से क्या फ़ाएदा हुआ जो पढ़ी जा-ब-जा नमाज़ ले जाते हैं मुझे सू-ए-दोज़ख़ कशाँ कशाँ रोज़े मिरे इधर हैं उधर है क़ज़ा नमाज़ हक़्क़-उल-यक़ीं का नाम उरूज-ए-मक़ाम है पढ़ते हैं औलिया सर-ए-दोश-ए-हवा नमाज़ मस्जिद में पाँच वक़्त दुआ वो भी वस्ल की 'माइल' बुतों के वास्ते पढ़ते हो क्या नमाज़