मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ मंज़िलों की बात है रास्ते में क्या कहूँ हुस्न-ए-बे-हिजाब पर कोई पर्दा डाल लो तुम उसे सनम कहो मैं उसे ख़ुदा कहूँ ऐ हरीस-ए-मय-कदा ख़ून-ए-ज़िंदगी न पी तू शराब अगर पिए तुझ को पारसा कहूँ गेसू-ए-सियाह की ये हसीं दराज़ियाँ रात क्यूँ कहूँ उन्हें रात की दुआ कहूँ तर्जुमान-ए-राज़ हूँ ये भी काम है मिरा उस लब-ए-ख़मोश ने मुझ से जो कहा कहूँ ग़ैर मेरा हाल-ए-ग़म पूछते रहे मगर दोस्तों की बात है दुश्मनों से क्या कहूँ इम्तिहान-ए-शौक़ है ऐसी आशिक़ी 'नुशूर' दिल का कोई हाल हो उन को दिलरुबा कहूँ