मैं अगर वो हूँ जो होना चाहिए मैं ही मैं हूँ फिर मुझे क्या चाहिए ग़र्क़-ए-ख़ुम होना मयस्सर हो तो बस चाहिए साग़र न मीना चाहिए मुनहसिर मरने पे है फ़तह-ओ-शिकस्त खेल मर्दाना है खेला चाहिए बे-तकल्लुफ़ फिर तो खेवा पार है मौजज़न क़तरा में दरिया चाहिए तेज़ ग़ैरों पर न कर तेग़-ओ-तबर आप अपने से मुबर्रा चाहिए हो दम-ए-अर्ज़-ए-तजल्ली पाश पाश सीना मिस्ल-ए-तूर-ए-सीना चाहिए हुस्न की क्या इब्तिदा क्या इंतिहा शेफ़्ता भी बे-सर-ओ-पा चाहिए पारसा बन गर नहीं रिंदों में बार कुछ तो बेकारी में करना चाहिए कुफ़्र है साक़ी पे ख़िस्सत का गुमाँ तिश्ना सरगर्म-ए-तक़ाज़ा चाहिए