मैं अपने वक़्त में अपनी रिदा में रहता हूँ और अपने ख़्वाब की आब-ओ-हवा में रहता हूँ कभी ज़मीन कभी सैर-गाह-ए-माह-ओ-नुजूम कभी मैं अक्स-ए-नज़र-आश्ना में रहता हूँ समाअतों पर उतरता हूँ मिस्ल-ए-सौत-ए-यक़ीं दिलों के वाहिमा-ए-बरमला में रहता हूँ मैं उड़ती गर्द हूँ अहल-ए-हुनर के तेशे की और अहल-ए-दर्द की भी ख़ाक-ए-पा में रहता हूँ मैं इक फ़क़ीर-ए-ख़ुदा-मस्त बरसर-ए-दुनिया जमाल-ए-यार की हैरत-सरा में रहता हूँ