मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता तो इस सदी में अकेला नज़र नहीं आता अजब दबाओ है उन बाहरी हवाओं का घरों का बोझ भी उठता नज़र नहीं आता मैं तेरी राह से हटने को हट गया लेकिन मुझे तो कोई भी रस्ता नज़र नहीं आता मैं इक सदा पे हमेशा को घर तो छोड़ आया मगर पुकारने वाला नज़र नहीं आता धुआँ भरा है यहाँ तो सभी की आँखों में किसी को घर मिरा जलता नज़र नहीं आता ग़ज़ल-सराई का दा'वा तो सब करे हैं 'वसीम' मगर वो 'मीर' सा लहजा नज़र नहीं आता