मैं अपनी ज़ात न अपने मकाँ में रहती हूँ धुएँ का फूल हूँ आतिश-फ़िशाँ में रहती हूँ करम है उस का जो देता है शुक्र के मौक़े करम है उस का जो मैं इम्तिहाँ में रहती हूँ ये वस्ल भी है किसी और जुस्तुजू जैसा किसी के पास किसी के गुमाँ में रहती हूँ मिरी बहार अभी लौट कर नहीं आई मैं ख़ुश्क पेड़ हूँ और गुल्सिताँ में रहती हूँ मिरे मुआ'मले पे ऐसे चुप हुए हैं लोग ये लग रहा है कि मैं रफ़्तगाँ में रहती हूँ मिरे क़बीले को आदत है कार-ओ-कारी की मैं इस के ख़ौफ़ से दार-उल-अमाँ में रहती हूँ 'क़मर' जो बिगड़ा हुआ है मिज़ाज दरिया का उसे पता है मैं कच्चे मकाँ में रहती हूँ