मैं बज़्म-ए-तसव्वुर में उसे लाए हुए था जो साथ न आने की क़सम खाए हुए था दिल जुर्म-ए-मोहब्बत से कभी रह न सका बाज़ हालाँकि बहुत बार सज़ा पाए हुए था हम चाहते थे कोई सुने बात हमारी ये शौक़ हमें घर से निकलवाए हुए था होने न दिया ख़ुद पे मुसल्लत उसे मैं ने जिस शख़्स को जी जान से अपनाए हुए था बैठे थे 'शुऊर' आज मिरे पास वो गुम-सुम मैं खोए हुए था न उन्हें पाए हुए था