मैं छुपा रहूँगा निगाह-ओ-ज़ख़्म की ओट में किसी और शख़्स से दिल लगा के भी देखना सर-ए-शाख़-ए-दिल कोई ज़ख़्म है कि गुलाब है मिरी जाँ की रग के क़रीब आ के भी देखना कोई तारा चुपके से रखना उस की हथेली पर वो उदास है तो उसे हँसा के भी देखना वो जो शाम तेरी पलक पे आ के ठहर गई मिरी रौशनी की हदों में ला के भी देखना बड़ी चीज़ है ये सुपुर्दगी का महीन पल न समझ सको तो मुझे गँवा के भी देखना