मैं चुप कम रहा और रोया ज़ियादा यक़ीनन ज़मीं कम है दरिया ज़ियादा शब-ए-वस्ल मुर्ग़-ए-सहर याद रखना ज़बाँ काट लूँगा जो रोया ज़ियादा मैं नाज़ुक-मिज़ाजी से वाक़िफ़ हूँ क़ासिद इसी वज्ह ख़त में न लिक्खा ज़ियादा दो बोसे लिए उस ने दो गालियाँ दीं न लेना ज़ियादा न देना ज़ियादा वो सैर-ए-चमन के लिए आ रहा है अकड़ना न शमशाद इतना ज़ियादा वो उतना ही बनता है हिर्स-ए-मुजस्सम ख़ुदा जिस को देता है जितना ज़ियादा अमल पर मुझे ए'तिमाद अपने कम है ख़ुदा के करम पर भरोसा ज़ियादा जो आँखें तिरे ख़ाक-ए-दर से हैं रौशन मिलाया है शायद ममीरा ज़ियादा मुझे उल्फ़त-ए-ज़ुल्फ़ जब से है 'परवीं' बताते हैं वो जोश-ए-सौदा ज़ियादा