मैं ढूँढता हूँ जिसे आज भी हवा की तरह वो खो गया है ख़ला में मिरी सदा की तरह न पूछ मुझ से मिरा क़िस्सा-ए-ज़वाल-ए-जुनूँ मैं पानियों पे बरसता रहा घटा की तरह तमाम उम्र रहा हूँ मैं जिस्म में महसूर तमाम उम्र कटी है मिरी सज़ा की तरह उतार दे कोई मुझ पर से ये बदन की रिदा कि मार डाले मुझे भी मिरे ख़ुदा की तरह निखरता जाए यूँही रंग-ए-शाम ऐ 'पाशी' बिखरता जाऊँ यूँ ही मैं गुल-ए-नवा की तरह