मैं हर्फ़-ए-इब्तिदा हूँ By Ghazal << बदलेगी काएनात मिरी बात मा... दराज़-दस्त को दस्त-ए-अता ... >> मैं हर्फ़-ए-इब्तिदा हूँ मुसलसल इक सदा हूँ सहर की आरज़ू में कहाँ तक आ गया हूँ तख़य्युल हूँ उसी का मैं जिस का नक़्श-ए-पा हूँ ज़माना देखता है मैं जिस को देखता हूँ मुझे ये होश कब है बुरा हूँ या भला हूँ उसे सुलझाऊँ कैसे मैं ख़ुद उलझा हुआ हूँ Share on: