मैं हुस्न-ओ-क़ब्ह-ए-ग़ज़ल को नज़र में रखता हूँ ये ए'तिमाद भी अपने हुनर में रखता हूँ ज़माना हो गया बिछड़े हुए मगर अब तक तुम्हारी याद दुआ-ए-सहर में रखता हूँ बहुत अज़ीज़ है मुझ को असासा-ए-तहज़ीब मैं ऐसी जिन्स-ए-गिराँ-माया घर में रखता हूँ वतन को जब भी ज़रूरत हो ख़ून की ले ले ये हौसला अभी क़ल्ब-ओ-जिगर में रखता हूँ तलाश-ए-मंज़िल-ए-हस्ती भी कितनी मुश्किल है मैं अपने आप को हर दम सफ़र में रखता हूँ जला जला के ख़ुद अपने नुक़ूश-ए-पा के चराग़ हर एक मोड़ हर इक रहगुज़र में रखता हूँ मिरी निगाह मिरा एहतिसाब करती है मैं अपने आप को अपनी नज़र में रखता हूँ