मैं इज़्तिराब में हूँ शाम से सहर के लिए कोई चराग़ अता कर दे रात-भर के लिए ख़ुदा बचाए तुम्हें ऐसी-वैसी नज़रों से गले में डाल लो ता'वीज़ तुम नज़र के लिए क़फ़स-नसीब हैं ना-आश्ना-ए-आज़ादी ये क़ैद एक चुनौती है बाल-ओ-पर के लिए निगाह-ए-बर्क़ में वो ख़ार से खटकने लगे जो तिनके जम्अ' किए हम ने अपने घर के लिए मसीह-ए-वक़्त तो ऐसी नफ़स सही लेकिन इलाज है कोई ज़ख़्म-ए-दिल-ओ-जिगर के लिए तुम्हारे हुस्न-ओ-अदा के हमीं शिकार नहीं न जाने कितनों के दिल तुम ने बन-सँवर के लिए तमाम-उम्र अँधेरे में कट गई यारब कोई चराग़ अता कर हमारे घर के लिए किसी के सामने सर ख़म करूँ मैं क्यूँ 'आजिज़' बनी है मेरी जबीं उन के संग-ए-दर के लिए