मैं जिस्म ओ जाँ के खेल में बेबाक हो गया किस ने ये छू दिया है कि मैं चाक हो गया किस ने कहा वजूद मिरा ख़ाक हो गया मेरा लहू तो आप की पोशाक हो गया बे-सर के फिर रहे हैं ज़माना-शनास लोग ज़िंदा-नफ़स को अहद का इदराक हो गया कब तक लहू की आग में जलते रहेंगे लोग कब तक जियेगा वो जो ग़ज़बनाक हो गया ज़िंदा कोई कहाँ था कि सदक़ा उतारता आख़िर तमाम शहर ही ख़ाशाक हो गया लहजे की आँच रूप की शबनम भी पी गई 'अजमल' गुलों की छाँव में नमनाक हो गया