मैं जो चाहूँ भी तो ऐसा नहीं होने देगी तू मुझे और किसी का नहीं होने देगी तिरी आवाज़ जगाएगी समाअ'त में फ़ुसूँ तेरी सूरत मुझे अंधा नहीं होने देगी बाप कोई भी मुसीबत नहीं आने देगा माँ मिरे दिल में अंधेरा नहीं होने देगी रोज़ आ जाता है मुझ को कोई मैसेज उस का या'नी वो ग़म का इज़ाला नहीं होने देगी इक तवाइफ़ जो जलाती है बदन से चूल्हा अपनी बेटी को अफ़ीफ़ा नहीं होने देगी तू मिरी मान किसी और से शादी कर ले मेरी ग़ुर्बत तो ये रिश्ता नहीं होने देगी वो जुदा हो भी अगर होगी सलीक़े से 'अली' या'नी धोके को तमाशा नहीं होने देगी