मैं जो रोता हूँ तो कहते हो कि ऐसा न करो तुम अगर मेरी जगह हो तो भला क्या न करो अब तो ऐ दिल हवस-ए-साग़र-ओ-मीना न करो छोड़ भी दो ये तक़ाज़ा ये तक़ाज़ा न करो दिल पे ऐ दोस्त क़यामत सी गुज़र जाती है तुम निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ से देखा न करो फिर भी आँखें उन्हें हर बात बता देती हैं दिल तो कहता है किसी बात का चर्चा न करो अब मिरा दर्द मिरी जान हुआ जाता है ऐ मिरे चारागरो अब मुझे अच्छा न करो ये सर-ए-बज़्म मिरी सम्त इशारे कैसे मैं तमाशा तो नहीं मेरा तमाशा न करो मिल ही जाती है कभी यास में तस्कीन मुझे ऐ उमीदो मुझे ऐसे में तो छेड़ा न करो उस ने 'शहज़ाद' तिरी बात को ठुकरा ही दिया मैं न कहता था कि इज़हार-ए-तमन्ना न करो