मैं जो ये आशियाँ बनाता हूँ बर्क़ को मेहमाँ बनाता हूँ इश्क़ की शरह आज तक न हुई रोज़ इक दास्ताँ बनाता हूँ कोई मरकज़ तो हो बलाओं का इस लिए आशियाँ बनाता हूँ ता वो हो बे-ख़ुदी में जल्वा-नुमा ला-मकाँ को मकाँ बनाता हूँ मश्क़-ए-शेर-ओ-सुख़न से मैं 'नातिक़' उन के क़ाबिल ज़बाँ बनाता हूँ