मैं कहा बोलना शब ग़ैर से था तुम को क्या मुस्कुरा कहने लगा शौक़ मिरा तुम को क्या जो कहा मैं कि बुरे तौर निकाले तुम ने फेर कर मुँह को लगा कहने भला तुम को क्या शिकवा उस बुत के जफ़ा का जो किया मैं तो कहा तुम तो दुनिया में हो इक अहल-ए-वफ़ा तुम को क्या दर्द-ए-सर दुश्मनों के उन के हुआ रात सो मैं जूँ ही घबरा के ये पूछा तो कहा तुम को क्या तान कर मुँह पे दुपट्टा ब-दम-ए-सर्द कहा तुम लगे पूछने क्यूँ हाल मिरा तुम को क्या हर घड़ी तुम जो मलामत मुझे करते हो 'हवस' आप मैं दाम-ए-मोहब्बत में फँसा तुम को क्या