मैं कहता रहा पर सुनी न गई झूटी कोई कहानी बुनी न गई भीग कर काँपता था बदन ये मेरा धूप थी सामने पर चुनी न गई काम इक ये अधूरा मेरा रह गया रंज से रूह पूरी भरी न गई धूप थी तेज़ इतनी की सब जल गया भीगती आँख से पर नमी न गई रात भर दास्ताँ जो सुनाता रहा काग़ज़ों पर कहानी लिखी न गई जाने क्या सोच कर लब ये हँसते रहे दर्द से थे भरे पर हँसी न गई क्या लिखा था इन आँखों में 'राही' बता क्या ज़बाँ थी जो तुझ से पढ़ी न गई