मैं कौन हूँ क्या हूँ मैं यही सोच रहा हूँ सूरत में मुक़य्यद हूँ मगर बिखरा हुआ हूँ ता-हद्द-ए-नज़र मेरे सिवा कोई नहीं है मैं जैसे किसी दर्द के सहरा में खड़ा हूँ ये बात मिरी सोच से बाहर है अभी तक मैं कोह था फिर कैसे समुंदर में बहा हूँ ये सच है किसी का हूँ मैं मतलूब न तालिब हैराँ हूँ कि किस वास्ते दुनिया में जिया हूँ बे-बस हूँ मैं ऐ मुझ से ज़िया माँगने वालो मैं दीप था जलने से मगर पहले बुझा हूँ 'प्रेमी' मुझे इस बात का ख़ुद इल्म नहीं है वो कौन है मैं जिस के ख़यालों में घिरा हूँ