मैं ख़ुद से दूर था और मुझ से दूर था वो भी बहाओ तेज़ था और ज़द में आ गया वो भी छुआ ही था कि फ़ज़ा में बिखर के फैल गया मिरी ही तरह धुएँ की लकीर था वो भी ये देखने के लिए फिर पलट न जाऊँ कहीं मैं गुम न हो गया जब तक खड़ा रहा वो भी अभी तो काँटों-भरी झाड़ियों में अटका है कभी दिखाई दिया था हरा-भरा वो भी बिछड़ने वाले किसी के लिए नहीं रुकते फिर ऐसा वक़्त भी आया बिछड़ गया वो भी