मैं कि अपने ही आस-पास नहीं सो भी अब मुझ को तेरी आस नहीं ज़िंदगी के बने नहीं इम्कान मौत का भी कोई क़यास नहीं क़हर पर क़हर मुझ पे टूटे हैं क्या सितम है कि मैं उदास नहीं चाहता हूँ कि तुझ को याद रखूँ पर ये चाहत भी उतनी ख़ास नहीं रह के दुनिया में दुनिया वालों से कहता फिरता हूँ दुनिया रास नहीं मेरी ख़्वाहिश है दरिया पास आए और मैं कह दूँ कि मुझ को प्यास नहीं