मैं क्या कहूँ कि तिरी चश्म-ए-इल्तिफ़ात नहीं हयात-ए-शौक़ पे तारी ग़म-ए-हयात नहीं जो दिल पे गुज़रीं मोहब्बत के ख़ास लम्हों में हदूद-ए-शरह-ओ-बयाँ में वो वाक़िआ'त नहीं ग़म-ए-दवाम-ए-मोहब्बत है तिश्ना-ए-मा'नी फ़ना के बा'द अगर मंज़िल-ए-हयात नहीं तिरे बग़ैर भी एहसास-ए-ज़ीस्त है लेकिन तड़प में दर्द की वो शोरिश-ए-हयात नहीं मक़ाम-ए-बे-ख़ुदी इश्क़ ऐ मआ'ज़-अल्लाह मैं उस जगह हूँ जहाँ मुझ को होश-ए-ज़ात नहीं निगाह-ए-दोस्त तिरी दिल-नवाज़ियाँ मा'लूम ख़ता मुआ'फ़ मैं ख़्वाहान-ए-इल्तिफ़ात नहीं जमाल तक ही न महदूद रख नज़र 'मानी' कि आशिक़ी की यही सारी काएनात नहीं