मैं क्या कहूँ कि ये क्यूँकर उदास रहता है तुम्हारे बाद तो दिल महव-ए-यास रहता है मैं क्या करूँगा भला ज़ीस्त बिन तिरे जानाँ कहीं रहूँ मैं ये दिल बद-हवास रहता है न-जाने कैसे अज़िय्यत समेटता ही रहा वफ़ा-शनास जो दिल की असास रहता है मैं क्यों कहूँ कि मैं तन्हा हूँ हिज्र का मारा वो बन के ख़ुशबू यहीं आस-पास रहता है मैं बन के उस की तमन्ना उड़ा फिरूँ तन्हा वो बन के मेरी वफ़ा का लिबास रहता है