मैं मील का पत्थर न डगर देख रहा हूँ पैरों पे जमी गर्द-ए-सफ़र देख रहा हूँ तारीकी नज़र आती है कुछ लोगों को लेकिन मैं हम्ल में इस शब के सहर देख रहा हूँ ये अम्न की धरती है मगर आज यहाँ पर तकरार का आलम है जिधर देख रहा हूँ वाक़िफ़ नहीं हमसाए के अहवाल से लेकिन टी-वी पे ज़माने की ख़बर देख रहा हूँ उड़ने की हवस में न कहीं जान गँवा दे च्यूँटी के निकल आए हैं पर देख रहा हूँ पेशानी-ए-हाकिम पे शिकन आ गई 'अंजुम' महकूम की आहों का असर देख रहा हूँ