मैं मुब्तला-ए-इश्क़ हूँ मुझ को पता न था By Ghazal << हमारा मक़्सद अगर सफ़र है ... कोई दरिया भी रवाँ है मुझ ... >> मैं मुब्तला-ए-इश्क़ हूँ मुझ को पता न था जब तक किसी ने हाल ये मेरा किया न था पाया है जब से तुझ को है तकमील का सुरूर मैं थी अधूरी तू मुझे जब तक मिला न था अल्लाह तेरे इश्क़ में हूँ हाल से बेहाल तब तक बड़े मज़े में थी जब दिल लगा न था Share on: