मैं मुतमइन न था किरदार से कहानी में सो अपनी उम्र गुज़रने दी राएगानी में बिलाद-ए-हाल सजाया है कू-ए-रफ़्ता में मैं अपने पेश-रवों की हूँ तर्जुमानी में ये क्या कि बैठा है दरिया किनार-ए-दरिया पर मैं आज बहता हुआ जा रहा हूँ पानी में हाँ आख़िरश अबद-ए-इश्तिराक-ए-ख़ाक मिला गो हम रहे सफ़र-ए-आसमान-ए-फ़ानी में ये शेर-ए-ज़र सुख़न-ए-बे-असर की मरक़द है सो कैसे सोज़ उजागर हो नग़्मा-ख़्वानी में