मैं न ठहरूँ न जान तू ठहरे कौन लम्हों के रू-ब-रू ठहरे न गुज़रने पे ज़िंदगी गुज़री न ठहरने पे चार-सू ठहरे है मिरी बज़्म-ए-बे-दिली भी अजीब दिल पे रक्खूँ जहाँ सुबू ठहरे मैं यहाँ मुद्दतों में आया हूँ एक हंगामा कू-ब-कू ठहरे महफ़िल-ए-रुख़्सत-ए-हमेशा है आओ इक हश्र-ए-हा-ओ-हू ठहरे इक तवज्जोह अजब है सम्तों में कि न बोलूँ तो गुफ़्तुगू ठहरे कज-अदा थी बहुत उमीद मगर हम भी 'जौन' एक हीला-जू ठहरे एक चाक-ए-बरहंगी है वजूद पैरहन हो तो बे-रफ़ू ठहरे मैं जो हूँ क्या नहीं हूँ मैं ख़ुद भी ख़ुद से बात आज दू-बदू ठहरे बाग़-ए-जाँ से मिला न कोई समर 'जौन' हम तो नुमू नुमू ठहरे