मैं न इक साअ'त रहा आराम में गर क़फ़स से छूट आया दाम में सब पे बाला ही रही बोली मिरी मैं जो पहूँचा हुस्न के नीलाम में तिल तह-ए-गेसू नहीं सय्याद ने आज दाना रख दिया है दाम में हज़रत-ए-दिल ने किए जुर्म-ओ-ख़ता बे-सबब हम आ गए इल्ज़ाम में आज़िम-ए-मुल्क-ए-अदम है ऐ मसीह तेरा बीमार अब तो सुब्ह-ओ-शाम में ज़ुल्फ़ छू कर हम ने ली सर पर बला आए नाहक़ कश्मकश के दाम में चश्म-ओ-लब के बोसे में जो है मज़ा वो कहाँ है पिस्ता-ओ-बादाम में उन के घर जाता हूँ कह देते हैं ये कोई कह दो वो तो हैं आराम में चाटते हैं होंठ सब आशिक़ तिरे है अजब लज़्ज़त तिरे दुश्नाम में ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ का है तसव्वुर रात-दिन जब से हम दाख़िल हुए इस लाम में मुर्ग़-ए-बिस्मिल हैं जो ये सय्याद आज तू ने क्या 'ख़ंजर' रखा है दाम में