मैं ने चाहत के गीत गाए थे सुनने वाले मगर पराए थे उम्र भर को ख़ुशी का रोग लगा एक दो दिन को मुस्कुराए थे राहतें ही न कर सके हासिल राहतों के महल बनाए थे मेरे ख़्वाबों की रौशनी में कभी इन लबों पर लबों के साए थे किस ने खींचें जफ़ा की तलवारें किस ने अरमाँ के ख़ूँ बहाए थे बह रही हैं नशात की नदियाँ क्या इशारे थे क्या किनाए थे मैं ने चाहत के आसमाँ पर दोस्त चाँद तारों के दफ़ बजाए थे हाए वो दिन जो तेरे साथ गए नग़्मा-ओ-नूर में नहाए थे