मैं ने धड़कन सुनी शजर की रात नींद पत्तों ने बे-ख़तर की रात उस ने रुख़्सत कभी न लेनी थी वो भी मारा गया सफ़र की रात भौंकती रहती है सितारों पर मेरे अंदर किसी खंडर की रात मैं ने दीवानगी में फाड़े हुए ख़ेमा-ए-ख़ाक में बसर की रात दिन तो लेकिन का ढल गया साहब सामने है अगर मगर की रात मैं हूँ सय्यारा-ए-फ़लक बेज़ार मुझ में दिन है कहाँ किधर की रात खोलते लावे पर गुज़ारी है एक बुझते हुए शरर की रात सुनी दस्तक 'शफ़क़' न ख़्वाबों की हाए मुझ शख़्स-ए-बे-ख़बर की रात