मैं ने सिर्फ़ अपने नशेमन को सजाया साल भर फ़स्ल-ए-गुल भी इस लिए आई है अब के डाल भर बद-गुमानी आई तो ले जाएगी रिश्ते तमाम देखना निकलेगी इन शीशों की हस्ती बाल भर वो ज़माना ठीक था ईमान लाने के लिए हैदर-ए-कर्रार भर ख़ैर और शर दज्जाल भर आज मेरी अर्ज़ पर ज़ुल्फ़ें अगर खोलेगा वो कल हसद की आग में जल जाएगा बंगाल भर कर दिया चाक-ए-गरेबाँ ने तुझे भी मो'तबर चल दिवाने तू भी अब जेब-ए-जुनूँ में माल भर सज्दा भर ईमान बाक़ी रह गया है शैख़ का और अक़ीदत-ए-बरहमन की रह गई है थाल भर नेक-ओ-बद की कश्मकश में हैं किरामन-कातिबीन चल 'शुजा' अब ख़ुद ही अपना नामा-ए-आमाल भर