मैं रोज़ एक नई दास्ताँ बनाऊँगा फिर इस के बाद ख़मोशी में डूब जाऊँगा सुकूँ मिले मुझे मिट्टी की कोख में शायद मैं मर गया तो कभी लौट कर न आऊँगा वो डोर है तो मिरे हाथ में रहेगी सदा पतंग है तो हवा में उसे उड़ाऊँगा जुदा जुदा हैं लकीरें सभी के हाथों की हुजूम में भी अकेला ही ख़ुद को पाऊँगा अगर नसीब हुई मुझ को एक भी नेकी मैं अपने सारे गुनाहों को भूल जाऊँगा